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Tuesday, April 30, 2013
पर सोचता हूँ मैं कैसे ...
कह सकूँ तो कह दूँ
दिल के अरमाँ बता दूँ
कब से पाल रहा हूँ
सपने सँजो-सँजो कर
एक सपने जैसा-है सब
हाँ, एक सपने जैसा-है सब
कहीं सपना ..... ही तो नहीं
चँचल-सी वो कोमल-परी |
फुर्सत में ख़याल आया ...
छोटी-छोटी बातों पर
वो खिल-खिलाकर उनका हँसना
छोटी-छोटी बातों पर खिल-खिलाकर हँसना
अपनी ही धुन में मस्त रहना
और वो धीमे-धीमे गुनगुनाना,
नटखट तो नहीं वो - 2
पर नासमझ भी नहीं हैं
नादानी कहना क्या ठीक होगा,
नादानी कहना क्या ठीक होगा उनकी उन हरकतों को
सानी नही कोई .. कहना क्या ठीक होगा |
[पूछते है लोग
क्यों रहते हो उनसे दूर-दूर ] -2
हाँ, खीचतें हैं दोस्त
क्यों रहते हो खोये-खोये
अब उन्हें क्या बताएं ...
हम तो उन्हें छूने का एक बहाना ढूँढते हैं
उनके लवों के लिए एक तराना ढूँढते हैं
और .... पास उनके आने का एक याराना ढूँढते हैं |
मुझे डर हैं
हाँ डर है, रह न जाए प्रेम अधूरा
उलझन में हूँ .... दूँ क्या खुद को मौंका - 2
पर मौके की ज़रूरत किसे हैं
हाँ, मौके की ज़रूरत किसे हैं
मन में है क्या
चाहता हूँ क्या करना
खुद को ना मालूम
क्या करेगी मदद दुनिया
फिकर नहीं मुझे अपनी
हाँ, फिकर नहीं मुझे अपनी
हूँ मैं रास्तो का आवारा
पर सोचता हूँ मैं कैसे ...
न करूँ उसकी फिकर
टूट जाएगी मेरे बिना,
लिहाज तो करना पड़ेगा
हाँ, इलाज तो करना पड़ेगा |
[कह पाता तो कह देता
दिल के अरमाँ बता देता] - २
अब उन्हें कैसे बताएँ
क्या हमारी मजबूरी है
पर .. क्या हर बात कहनी ज़रूरी है
लिख तो डाली ये कविता
बस .. उन तक पहुंचनी अधूरी है
पर सोचता हूँ मैं कैसे ....
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